- वैदिक संस्कृत 1500 ई. पू . से 1000 ई. पू .
- लौकिक संस्कृत 1000 ई. पू . से 500 ई. पू .
- पालि / प्रथम प्राकृत 500 ई. पू . से 0 ई. पू .
- शुद्ध प्राकृत / द्वितीय प्राकृत 0 ई. से 500 ई. तक
- अपभ्रंश 500 ई. से 1000 ई. तक
- हिन्दी एवं आधुनिक आर्य भाषाएँ 1000 ई. से अब तक
मध्यकालीन आर्य भाषा काल में तीन भाषाएँ विकसित हुई
(1) पालि (500 ई० पू० से 1 तक)
(2) प्राकृत (1 ई० से 500 ई० तक )
(3) अपभ्रंश (500 ई० से 1000 ई० तक )
- पालि भाषा बौद्ध धर्म की भाषा है जिसका एक अन्य नाम मागधी भाषा भी है।
- हिन्दी का उद्भव अपभ्रंश से हुआ । हिन्दी का आरम्भिक रूप को अवहट् माना जाता है।
- भारत में प्रमुख रूप से आर्य परिवार एवं द्रविड़ परिवार की भाषाएँ बोली जाती है। ( तमिल, तेलगू, कन्नड़, मलयालम ) ये चार आती है।
- हिन्दी / आधुनिक आर्य भाषाओं का विकास अपभ्रंश के उत्तरवर्ती रूप से हुआ । अपभ्रंश के निम्नलिखित सात रुप थे।
(1) मागधी अपभ्रंश से बिहारी हिन्दी का विकास हुआ। इसके अन्तर्गत :- ( i ) मगही, मैथिली, भोजपुरी ( i i ) बंगला ( i i i ) असमिया ( i v ) उड़िया
( 2 ) अर्द्ध मागधी अपभ्रंश पूर्वी हिन्दी – अवधी, वघेली, छत्तीसगढ़
( 3 ) महाराष्ट्रीय अपभ्रंश – मराठी भाषा का विकास
( 4 ) खत अपभ्रंश – पहाड़ी हिन्दी का विकास ( तीन बोलियो का विकास मंडियाली, गढ़वली, कुंमऊनी, नेपाली ) हुआ ।
( 5 ) ब्राचड़ अपभ्रंश – सिंधी
( 6 ) पैशाची अपभ्रंश – पंजाबी , लंहदा . भाषाएँ
( 7 ) शौरसेनी अपभ्रंश – पश्चिमी हिन्दी, राजस्थानी हिन्दी, गुजराती हिन्दी
परागु प
पश्चिमी हिन्दी – ( i ) खड़ी बोली (ii ) ब्रज भाषा (iii ) हरियाणवी (iv) बुंदेली ( v ) कन्नौजी
राजस्थानी हिन्दी – ( i ) पश्चिमी राजस्थानी ( मारवाड़ी ) ( i i ) पूर्वी राजस्थानी ( i i i ) उत्तरी राजस्थानी ( मेवाती ) . ( iv) दक्षिणी राजस्थानी ( मालवी)
गुजराती हिन्दी
खड़ी बोली का नामकण
( 1 ) खड़ी बोली – लल्लूलाल
( 2 ) कौरवी – शुक्ल , राहुल सांकृत्यायन
( 3 ) टकसाली भाषा – गिलक्राइस्ट
( 4 ) जनपदीय भाषा – सुनीति कुमार चटर्जी
विशेष तथ्य : –
(1) खड़ी बोली के प्रथम कवि – अमीर खुसरो
( 2 ) दक्षिणी भारत में खड़ी बोली में रचना करने वाले प्रथम कवि – मुल्ला बजही
( 3) मुल्ला बजही की रचना – सबरंग
( 4 ) खड़ी बोली गद्य की प्रथम रचना – चंद छंद बरनन की महिमा
( 5 ) खड़ी बोली गद्य के रचनाकार – गंगकवि
( 6 ) खड़ी बोली गद्य की प्रथम परिमार्गिक रचना – भाषा योग वशिष्ट ( शुक्ल के अनुसार ), 1741
( 7 ) भाषा योग वशिष्ट के रचनाकार – राम प्रसाद निरंजनी
( 8 ) खड़ी बोली हिन्दी का प्रथम महाकाव्य – प्रियप्रवास ( 1914) , हरिऔध
( 9 ) अयोध्या प्रसाद खत्री ने 1885 – 1887 तक खड़ी बोली के समर्थन में आंदोलन चलाया ।
(10) बाबू जगन्नाथ दास रत्नाकर ने खड़ी बोली के समर्थकों को हठी एवं मूर्ख कहा।
वर्तमान में खड़ी बोली की निम्मलिखित तीन शैलियां प्रचलन में है : –
( 1) हिन्दुस्तानी (2) आर्य भाषा ( साहित्यिक खडी बोली ( 3) उर्दू भाष
(1) हिन्दुस्तानी : – संस्कृत एवं फारसी के सभी प्रचलित शब्दों की प्रधानता
(2) आर्य भाषा : – तत्सम् शब्दों की प्रधानता
( 3 ) उर्दू : – अरबी फारसी के शब्दों की प्रधानता
अपभ्रंश के विशेष तथ्य : –
( 1) अपभ्रंश के महान कवि – स्वयंभू
( 2 ) इनकी रचना ग्रन्थ : – पउमचरिउ, रिटठणेमिचरिउ , स्वयंभूछन्द
पउमचरिउ अपूर्ण ग्रंथ है। इसमें राम के चरित्र का विस्तार से वर्णन है।
( 3 ) अपभ्रंश के दूसरे कवि – पुष्पदंत ( 10 वीं शताब्दी )
(4) पुष्पदंत की रचनाएँ : – महापुराण , णयकुमार चरिउ , जसहर चरिउ
( 5 ) अपभ्रंश के तीसरे कवि – धनपाल ( 10 वीं शताब्दी )
( 6 ) धनपाल की रचना – भविसयत्तवहा
( 7 ) अपभ्रंश साहित्य के समर्थ कवियों में अब्दुल रहमान का नाम आता है इन्होंने ‘ सन्देशरासक’ लिखी । संदेशरासक एक खण्डकाव्य है।