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ज़िन्दगी

         जिन्दगी 

सभी के साथ होते हुए भी अकेली है
कभी हंसी कभी आंसू
कहीं पर प्यार के अरमान
कहीं पर दर्द के तूफान
कहीं पर सुखो के मीत है
कहीं पर दुखो के गीत है
कहीं फूलों सी नाजुक होती है
कहीं दुखो सी  बोझिल होती है
किसी को तो प्यार से भी 
प्यारी लगती है जिन्दगी
किसी को मौत से भी
बदतर लगती है ज़िन्दगी
किसी को जीते जी
मार डालती है जिन्दगी
किसी को जीने के लिए 
मजबूर कर देती है जिन्दगी
अरे भई ! सभी के लिए
समान  नहीं होती जिन्दगी

और पढ़ें : -  एकान्त

.... डॉ० मानवती निगम

5 thoughts on “ज़िन्दगी”

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