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हिंदी साहित्य का इतिहास

 

हिंदी साहित्य का इतिहास दर्शन

इतिहास के समानार्थक ‘ हिस्ट्री’ ( History) शब्द का प्रयोग यूनानी विद्वान हेरोडोटस ( 456 – 445 ई0 पू0 ) ने किया । हेरोडोटास महोदय ने इतिहास के चार प्रमुख लक्षण निर्धारित करते हुए बताया कि

(1) इतिहास एक वैज्ञानिक विधा है अर्थात इसकी पद्धति आलोचनात्मक होती है।

(2) यह मानव जाति से सम्बन्धित होता है, अत: यह एक मानवीय विधा है।

(3) यह तर्कसंगत विद्या है , क्योंकि इसके तथ्य और निष्कर्ष प्रमाणों पर आधारित होते है।

(4) यह शिक्षाप्रद विद्या है , क्योंकि यह अतीत के आलोक में भविष्य पर प्रकाश डालता है।

इटैलियन विद्वान विको ने इतिहास को केवल अतीत से सम्बद्ध न मानकर उसे वर्तमान से सम्बन्धित किया।

इतिहास का निर्माता स्वयं मनुष्य है और मनुष्य की मूलभूत प्रवृत्तियाँ समान रहती है , अतः विभिन्न युगों में भी समान प्रवृत्तियों का मिलना स्वाभाविक है। इतिहास चक्रवत घूमता रहता है। इसी आधार पर विको महोदय ने मानव समाज के विकास की तीन अवस्थाऍं तय की – देव युग , वीर युग , मानव युग।

जर्मन दार्शनिक काण्ट ( 1724 – 1804 ई० ) ने इतिहास की नई व्याख्या करते हुए प्रतिपादित किया है कि ” जगत् की वस्तुओं का विकास उसके प्राकृतिक इतिहास के समकक्ष रहता है। बाह्य प्रगति उन आन्तरिक शक्तियों की कलेवर मात्र होती है। यह एक निश्चित नियमानुसार मानव जगत् में कार्यशील रहती है ।”

हीगल (1770 – 1831 ई.) ने इतिहास दर्शन पर गम्भीरता से विचार करते हुए काण्ट की ही विचारधारा को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। उनके अनुसार ” इतिहास केवल घटनाओं का अन्वेषण या संकलन मात्र नहीं है , बल्कि उसके अन्दर कारण – कार्य की श्रृंखला विद्यमान है।”

हिंदी साहित्य का इतिहास

इतिहासकार केवल घटनाओं का निश्चय नहीं करता बल्कि उनकी आन्तरिक प्रवृत्तियों का उदघाटन भी करता है। समस्त विश्व में कारण कार्य की श्रंखला का जाल बिछा हुआ है। अत: वास्तविक इतिहास वह है जो इस श्रृंखला की व्याख्या करता हुआ विश्व सभ्यता की प्रगति का वृत्तान्त प्रस्तुत करता है। विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिक्रियाओं के आधार पर अपने सिद्धान्तों की स्थापना की है। डार्विन का विकासवाद जीव सृष्टि की क्रियाओं पर आधारित है। वहीं स्पेन्सर का सिद्धांत भौतिक पिण्डों के संघटन व विद्यटन की प्रक्रियाओं के आधार पर । इसी प्रकार कार्ल मार्क्स का सिद्धान्त आर्थिक दृष्टिकोण से प्रतिपादित है तो हेनरी वगेंस का सिद्धान्त मूलतः मानसिक प्रक्रियाओं पर आधारित है।

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हिंदी साहित्यिक रचनाओं का प्रकाशन

हिंदी साहित्य के इतिहास से संबंधित रचनाएँ एवं उनके रचनाकार

1हिंदी काव्यधाराराहुल सांकृत्यायन1945
2हिंदी वीरकाव्यटीकम सिंह तोमर1945
3हिंदी भाषा और साहित्य का इतिहासचतुरसेन शास्त्री1946
4हिंदी साहित्य का सुबोध इतिहासबाबू गुलाब राय1952
5हिंदी साहित्य के विकास की रूप रेखाराम अवध दिवेदी1956
6इतिहास और आलोचनाडॉ० नामवर सिंह1956
7हिंदी साहित्य का अतीत ( दो भाग)विश्वनाथ प्रसाद मिश्र1959
8साहित्य का इतिहास दर्शननलिन विलोचन शर्मा1960
9हिंदी साहित्यानुशीलनसत्यकाम वर्मा1962
10आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँनामवर सिंह1962
11हिंदी साहित्य – तीन खण्डडॉ० धीरेन्द्र वर्मा एवं ब्रजेश्वर वर्मा1959, 1962, 1969
12हिंदी काव्य की सामाजिक भूमिकाशंभूनाथ सिंह1966
13हिंदी साहित्य का विवेचनात्मक इतिहासराजनाथ शर्मा1968
14हिंदी साहित्य का नया इतिहासरामखिलावन पांडेय1969
15हिंदी साहित्य : ऐतिहासिक समीक्षापदमलाल पुन्नालाल बख्शी1969
16हिंदी साहित्य का इतिहाससुमन राजे1975
17हिंदी साहित्य का आधा इतिहाससुमन राजे2013
18साहित्येतिहास संरचना और स्वरूपसुमन राजे1975
19साहित्य और इतिहास दृष्टिमैनेजर पांडेय1981
20हिंदी साहित्य का समीक्षात्मक इतिहासवासुदेव मिंह1982
21हिंदी साहित्य और सवेदना का विकासरामस्वरूप चतुर्वेदी1986
22भारतीय साहित्य के इतिहास की समस्याएँरामविलास शर्मा1987
23हिंदी साहित्य का प्रवृत्तिपरक इतिहाससभापति मिश्र1996
24हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहासडाॅ० बच्चन सिंह1996
25हिंदी साहित्य का ओझल नारी इतिहासनीरजा माधव2013
26राजस्थानी भाषा और साहित्यमोतीलाल मेनारिया 
27मॉडर्न हिंदी लिटरेचरइद्रनाथ मदान1939

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1 thought on “हिंदी साहित्य का इतिहास”

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