प्रिय पाठको आज में हिन्दी साहित्य को लिखने की परंपरा के बारे में बताऊंगी । हिन्दी साहित्य को लिखना किसने शुरु किया यह मैं आज आपको details से बताऊंगी । मेरे द्वारा दिए गए नोट्स स्कूल व्याख्यात , TGT, PGT, Assistant Professor और अन्य प्रकार की परिक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के काम आएगी । हिन्दी विषय से सम्बन्धित अधिक से अधिक जानकारी देने की मैं डॉ० मानवती निगम पूरी कोशिश करुँगी। चलिए अब हम हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की परंपपरा को details से पढ़ते व समझते हैं।
हिन्दी में साहित्येतिहास लेखन की परंपरा
आधुनिक काल में 19 वीं शताब्दी में इतिहास लेखन शुरु हुआ । भारत में मध्यकाल में लिखे गए विशिष्ट अनौपचारिक इतिहास ग्रन्थ (मध्यकाल में लिखे गए )
( 1 ) कालिदास – कवि कालिदास हजारा ( 1775 वि० सं०)
(2) भक्तमाल – नाभादास ( 1642 ) इसमें कवियों का वर्णन किया गया है।
(3) चौरासी वैष्णवन की वार्ता – गोकुल नाथ (गद्य) 1625 वि० सं०
(4) दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता – गोकुल नाथ (गद्य )
(5) मूल गोसाई चरित – वेणी माधव दास ( 1687 )
(6) कविमाला – तुलसी ( भक्तिकाल वाले नहीं ) 1712 वि० सं० , इनका वास्तविक नाम हरियाय था ।
“इतिहास एक दर्शन है जो दृष्टांतो के द्वारा शिक्षा प्रदान करता है।”
साहित्य मतलब जिसमें सबका हित होता है साहित्य कहलाता है।
यह भी पढ़ें : – Hindi ka aadikaaleen sahitya (हिंदी का आदिकालीन साहित्य)
1. गार्सा द तासी ( फेंच विद्वान )
रचना – इस्तवार द ला लितरेत्यूर ऐंदुई – ए – ऐंदुस्तानी
हिंदी अर्थ – हिंदुस्तानी एवं हिंदुई साहित्य का इतिहास
प्रकाशन : –
प्रथम संस्करण :- दो भाग
प्रथम भाग – 1839 ई0 , द्वितीय भाग – 1847 ई0
द्वितीय संस्करण :- तीन भाग
प्रथम भाग – 1870 ई0 द्वितीय भाग – 1870 ई0 तृतीय भाग – 1871 ई0
प्रकाशन संस्था :- द ऑरियंटल ट्रांसलेशन कमेटी, आयरलैैंड
विशेष तथ्य : –
(1) फेंच भाषा में रचित
(2) हिंदी साहित्य के इतिहास का प्रथम ग्रंथ
(3) वर्णानुक्रम पद्धति में रचित
(4) इसमें उल्लेखित प्रथम कवि अंगद एवं अंतिम कवि हेमंत पंत है।
(5) हिंदी के प्रथम कवि के बारे में कोई विचार नहीं
(6) काल विभाजन का प्रयास नहीं
(7) कुल रचनाकार – 738 ( हिंदी के रचनाकार 72 थे )
(8) गार्सा द तासी के इस इतिहास ग्रंथ का 1848 ई0 में मौलवी करीमुद्दीन ने वाई . एफ. फैलन के सहयोग से ‘ तबकात – उ – श्शुअरा – ई – हिंदी’ नामों से उर्दू में अनुवाद किया ।
=> मौलवी करीमुद्दीन द्वारा अनूदित ग्रंथ में कुल 1004 रचनाकारों का परिचय है ( हिंदी के केवल 60 है )
(9) गार्सा – द – तासी के इतिहास ग्रंथ का 1953 ई0 में डॉ० लक्ष्मी सागर वाष्णेय ने ‘ हिंदुई साहित्य का इतिहास ‘ नाम से हिंदी में अनुवाद किया । वार्ष्णेय प्रयाग वि० वि० में हिंदी के प्रोफेसर थे। इन्होंने कवि 358 लिए और हिंदी के 220 कवि माने ।
=> कुल रचनाकार – 358 , हिंदी के रचनाकार – 220
(2) . ठाकुर शिवसिंह सेंगर
रचना – शिवसिंह सरोज
इसका प्रथम प्रकाशन 1878 ई0 में हुआ किंतु कुछ त्रुटियाँ रह जाने के कारण इसे 1883 ई0 में पुनः प्रकाशित करवाया गया।
प्रकाशक संस्था :- नवल किशोर प्रेस, लखनऊ
विशेष तथ्य :-
(1) हिंदी में रचित हिंदी का प्रथम इतिहास ग्रंथ
(2) वर्णानुक्रम पद्धति में रचित
(3) कालिदास त्रिवेदी के ‘कालिदास हजारा’ आधार पर रचना
(4) कुल रचनाकार 1003 है ( प्राकृत, हिंदी, अपभ्रंश )
(5) पुष्प / पुंड को हिंदी का प्रथम कवि माना गया है ।
(6) काल विभाजन का कोई प्रयास नहीं किया गया है।
(7) शुक्ल जी ने इसे भी वृत्त संग्रह कहा है।
(3) जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन
रचना – “द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान”
टिप्पणी :- ‘ द रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल ‘ की पत्रिका के विशेषांक के रूप मे 1888 ई0 में तथा पुस्तकाकार रूप में प्रकाशन 1889 ई0 में हुआ ।
विशेष तथ्य :-
( 1 ) अंग्रेजी भाषा में रचित
(2) कालानुक्रम पद्धति में रचित
(3) कुल 952 रचनाकारों को स्थान दिया गया है । ( सभी रचनाकार हिंदी के है । )
( 4 ) कालानुक्रम पद्धति में रचित हिंदी का प्रथम इतिहास ग्रंथ है।
( 5 ) पहला इतिहास ग्रंथ जिसमें केवल हिंदी के रचनाकारों को स्थान दिया गया है।
( 6 ) इसमें कुल 12 अध्याय है।
( 7 ) हिंदी साहित्य के विकास क्रम को 11 युगों में बाँटा गया है : –
( i ) चारण काल
( i i ) पंद्रहवी शताब्दी का धार्मिक पुनर्जागरण
(i i i ) जायसी की प्रेम कविता
(iv) ब्रज का कृष्ण सम्प्रदाय
( v ) मुगल दरबार
( vi ) तुलसीदास
( vi i ) रीतिकाव्य
( vi i i ) तुलसी के अन्य परवर्ती कवि
(ix) महारानी विक्टोरिया के शासन में हिंदुस्तान
(x ) कंपनी के शासन में हिंदुस्तान
( x i ) 18 वीं शताब्दी
( xii) विविध
( 8 ) शुक्ल जी इन्हें युग न मानकर अध्यायों के नाम मात्र मानते है।
( 9 ) ग्रियर्सन ने अपने इतिहास ग्रंथ के लिए निम्नलिखित रचनाओं को आधार बनाया :-
(i) इस्तवार द ला लितरेत्यूर ऐंदुई – ए – ऐंदुस्तानी
(ii ) शिवसिंह सरोज
(iii ) भक्तमाल
( iv ) मूल गोसाई चरित
( v ) कालिदास हजारा
(vi) काव्य संग्रह
( vii ) श्रृंगार संग्रह ( सरदार कवि)
( viii ) विचित्रोपदेश ( ककछेदी तिवारी)
( ix ) सुंदरी तिलक ( हरिशचंद्र )
( x ) राग सागरोदभव राग कल्प द्रुम ( कृष्णानंद व्यास )
# हिंदी को अंग्रेजों द्वारा आविष्कृत भाषा माना गया है।
# भक्ति आंदोलन को ईसाइयत की देन माना गया
# भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का ‘ स्वर्ण युग ‘ कहा गया
टिप्पणी :-
भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का ‘ स्वर्ण युग ‘ श्यामसुंदर दास ने कहा है।
( 4 ) मिश्र बंधु
रचना – मिश्रबंधु विनोद
मिश्र बंधु विनोद ( श्याम बिहारी मिश्र, शुकदेव बिहारी मिश्र , गणेश बिहारी मिश्र ) तीनों ने मिलकर लिखा।
प्रथम तीन भागों का प्रकाशन – 1913 ई0
चतुर्थ भाग का प्रकाशन – 1934 ई0
कालानुक्रम पद्धति , कुल 4591 रचनाओं का परिचय
यह भी देखें :- हिंदी साहित्य का काल विभाजन
विशेष तथ्य : –
1. यह इतिहास ग्रंथ नागरी प्रचारिणी सभा, काशी द्वारा चलाये गये हस्तलिखित ग्रंथो की खोज अभियान के आधार पर लिखा गया। ( नागरी प्रचारिणी सभा , काशी ने हस्तलिखित ग्रंथो की खोज का अभियान 1900 ई0 से 1921 ई0 तक चलाया गया था )
2 . इसमें अनेक अज्ञात कवियों को शामिल कर उनके साहित्यिक महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।
3. कवियों के जीवन चरित्र वर्णन के साथ – साथ साहित्यिक विविध अंगों पर भी प्रकाश डाला गया है।
4 . तुलनात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए कवियों की श्रेणियाँ निधारित की गई है। रचनाकारो को तीन भागों में विभक्त किया गया है : – (i) उत्तम (ii ) मध्यम (iii ) सामान्य
5 . हिन्दी साहित्य में इतिहास का इतिवृत्तात्मक लेखन सबसे पहले मिश्रबंधु विनोद में मिलता है।
6. इसमें प्रमुख रनाकारों का विवरण समालोचना सहित दिया गया है और सामान्य कवियों की नामावली संक्षिप्त सूचनाओं के साथ प्रस्तुत की गई है।
7 . इसमें प्रत्येक कवि को एक सुनिश्चित संख्या प्रदान की गई है। ( ग्रियर्सन की पद्धति की अनुकरण )
8. मिश्रबधुओं ने अपने इतिहास ग्रंथों के लिए निम्नलिखित स्रोतो का सहारा लिया –
( i ) कवियों के स्वरचित ग्रंथ
(ii ) शिवसिंह सरोज
( iii ) ग्रियर्सन का इतिहास ग्रंथ
(iv) मुंशी देवी प्रसाद के लेख
(v) नागरी प्रचारिणी सभा की खोज रिपार्ट
9 . आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने मिश्रबंधु विनोद को ‘ बड़ा भारी वृत संग्रह ‘ तथा मिश्रबंधुओं को परिश्रमी संकलनकर्ता कहा है।
10. ” मिश्रबंधु – विनोद ” को शुक्लजी के इतिहास ग्रंथ का उपजीव्य ( आधार ग्रंथ ) माना जाता है।
11. मिश्रबंधुओं द्वारा किया गया काल विभाजन
1 . आरम्भिक काल – वि० सं० 700 से 1444 , इसके दो भाग है : ( i ) पूर्वांरभिक काल – वि॰ सं॰ 700 से1343 (ii ) उत्तरंभिक काल – वि० सं० 1344 – 1444
2 . माध्यमिक काल – वि० सं० 1445 -1680, इसके दो भाग है: – (i) पूर्व मा. काल – 1445 – 1560 (ii) प्रोढ़ मा. काल – 1561 – 1680
3. अलंकृत काल – वि ० सं० 1681 – 1889 , इसके दो भाग हैः ( i ) पूर्वालंकार काल – 1681 – 1790 (ii ) उत्तरलंकृत काल – 1971 – 1889
4 . परिवर्तन काल – वि० सं० 1890 – 1925
5 . आधुनिक काल – वि ० सं० 1926 से
12. मिश्रबंधुओं की एक रचना ‘हिंदी नवरत्न’ है जिसका रचनाकाल 1910 ई0 है। इसमें शामिल क्रम है: –
(i) तुलसीदास
(ii) सूरदास
(iii) देव
(iv ) बिहारी
(v) त्रिपाठी बंधु ( इसमें दो को शामिल – भूषण व मतिराम )
( vi ) केशव
( vii ) कबीर
( viii ) चंदबरदायी
( ix) भारतेंदु हरिशचंद्र
5 . आचार्य रामचंद्र शुक्ल
रचना – हिन्दी साहित्य का इतिहास
प्रकाशन वर्ष – 1929 ई0
प्रकाशन संस्था- नागरी प्रचारिणी सभा, काशी 997 रचनाकारों का परिचय ( लगभग 1000)
पद्धति – विधेयवादी पद्धति
विशेष तथ्य : –
1. यह इतिहास ग्रंथ ” हिंदी शब्द सागर” की भूमिका के रूप में लिखा गया था । ‘ हिन्दी शब्द सागर ‘ की भूमिका आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ‘हिन्दी साहित्य का विकास ‘ नाम से 1928 ई0 में लिखी ।
भूमिका विशाल हो जाने के कारण इसे ही 1929 ई0 ” हिन्दी साहित्य का इतिहास ” नाम से प्रकाशित करवाया गया।
2 . शुक्ल जी के इतिहास ग्रंथ का पूर्व नाम – “हिन्दी साहित्य का विकास
3 . रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित इतिहास ग्रंथ को सही अर्थो में हिंदी साहित्य का पहला प्रमाणिक इतिहास ग्रंथ माना जाता है।
4 . इसका संशोधित और परिवर्तित संस्करण 1940 ई0 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद 1945 फिर 1951 में भी हुआ ।
5 . इस इतिहास ग्रंथ में साहित्यकारों की संख्या के स्थान पर ज्यादा साहित्यिक महत्त्व वाले रचनाकारों का ही ध्यान रखा गया है।
6 . कवियों के निरुपण में समालोचनात्मक पद्धति अपनाई है।
7 . कवियो / लेखकों की रचना शैली का वैज्ञानिक विश्लेषण
8 . शुक्ल जी ने हिंदी साहित्य के विकास क्रम को चार युगों में बाँटा है।
9. प्रत्येक युग की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक पृष्ठभूमियों की विवेचना ।
10. प्रत्येक युग एवं रचनाकारों की प्रवृत्तियों का विश्लेषण
11. युगों का दुहरा नामकरण
12. मुंज / भोज को हिंदी का प्रथम कवि माना
13. तुलनात्मक पद्धति का सहारा भी लिया गया है।
14 . शुक्ल जी ने अपने इतिहास ग्रंथ के लिए निम्नलिखित रचनाओं को आधार के रूप में ग्रहण किया : –
(i) मिश्रबंधु विनोद ( कवियों के परिचयात्मक विवरण मैंने मिश्रबंधु विनोद से ग्रहण किये है। )
( ii ) हिंदी कोविद रत्नमाला – श्यामसुंदर लाल
(iii ) कविता कौमुदी – रामनरेश त्रिपाठी
(iv) ब्रज माधुरी सार – वियोगी हरि
15 . शुक्ल जी के इतिहास ग्रंथ का आरंभ सिद्धो की वाणियों से हुआ है
6. डॉ० रामशंकर शुक्ल ‘रसाल’
रचना – हिंदी साहित्य का इतिहास
प्रकाशन वर्ष – 1931
पद्धति – कालानुक्रम
7 . डॉ० रामकुमार वर्मा
रचना – हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास
प्रकाशन वर्ष – 1931
पद्धति – आलोचनात्मक / कालानुक्रम
639 ई0 से 1693 ई0 तक के काल खंड के रचनाकारों का ही वर्णन ( संधकाल – चारण काल से भक्तिकाल तक का वर्णन , अधूरा ग्रंथ )
विशेष तथ्य : –
1. यह इतिहास ग्रंथ नागपुर विश्वविद्यालय के लिए शोध प्रबंध के रूप में लिखा गया । इसी ग्रंथ के आधार पर नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा इन्हें 1940 ई0 में पी -एच0 डी0 ( Ph.D.) की उपाधि प्रदान की गई।
2 . स्वयंभू को हिंदी का प्रथम कवि माना।
3 . संधिकाल में अपभ्रंश की बहुत सी रचनाओं को शामिल कर दिया।
8. आचार्य हजारी प्रसाद दिवेदी
रचनाएँ : –
(i) हिन्दी साहित्यकी भूमिका – 1940 ई0
(ii)हिंदी साहित्य : उद्भव एवं विकास -1952 ई0
(iii) हिंदी साहित्य का आदिकाल – 1953 ई0
विशेष तथ्य : –
1 . रचनाकारों का मूल्यांकन करने में समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण अपनाया
2. शुक्ल जी के वीरगाथा काल को ‘ आदिकाल’ कहा।
3 . आदिकाल को ‘ अत्यधिक व्याघातों एवं विरोधो का युग’ कहा।
4 . भक्तिकाल को ‘ एक नई दुनिया’ कहा।
5 . अब्दुल रहमान ( अद्दहमाण ) को हिंदी का प्रथम कवि माना
6 . भक्तिकाल को भारत की सांस्कृतिक चेतना के विकास का परिणाम माना।
7 . शुक्ल जी ने जिन बारह रचनाओं के आधार पर आदिकाल को वीरगाथा काल कहा था , हजारी प्रसाद दिवेदी ने उनमें से अधिकांश को परवर्ती सिद्ध किया।
8 . ” संभवतः दिवेदी जी पहले व्यक्ति है, जिन्होंने शुक्ल की अनेक धारणाओं और स्थापनाओं को चुनौती देते हुए सबल प्रमाणों के आधार पर खंडित किया है।” – – गणपतिचंद्र गुप्त
9. डॉ० गणपतिचंद्र गुप्त
रचना – हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास
प्रकाशन : – दो भाग
प्रथम भाग -1964 , द्वितीय भाग -1965 ई०
पद्धति – वैज्ञानिक पद्धति
विशेष तथ्य : –
1 . आदिकाल को प्रारंभिक / शून्यकाल कहा।
2 . शालिभद्र सूरी को हिंदी का प्रथम कवि माना।
3 . भक्तिकालीन साहित्य को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभक्त किया :
( i ) लोकाश्रय में रचित साहित्य
(ii) राज्याश्रय में रचित साहित्य
(iii) धर्माश्रय में रचित साहित्य
10 . डॉ० नगेन्द्र
रचनाएँ : –
(i) हिंदी साहित्य का वृहद् इतिहास ( 10 भाग )
प्रकाशन वर्ष – 1973 ई0
(ii ) हिंदी साहित्य का इतिहास (हरदयाल के साथ मिलकर किया )
प्रिय पाठको आपको मेरे द्वारा दी गई जानकरी कैसी लगी कृपया comment द्वारा बताएं ।
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