हिन्दी साहित्य का इतिहास : आदिकाल
आदिकाल का समय ( 1050 से 1375 ) तक माना जाता है। भारतीय साहित्य का उद्धव ऋग्वेद से माना जाता है। हिन्दी साहित्य सृजन की हिन्दी भाषा में निश्चित क्रम की 10 वीं शताब्दी से दिखाई देता है। इतिहास का निर्माता स्वयं मनुष्य है और मनुष्य की मूलभूत प्रवृत्तियाँ समान रहती है, अतः विभिन्न युगों में भी समान प्रवृत्तियो का मिलना स्वाभाविक है। इतिहास चक्रवत घूमता रहता है। होगल ( 1770 – 1831 ई0 ) ने इतिहास दर्शन पर गम्भीरता से विचार करते हुए काण्ट की ही विचारधारा को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। उनके अनुसार ‘ इतिहास केवल घटनाओं का अन्वेषण या संकलन मात्र नहीं है, बल्कि उसके अन्दर कारण कार्य की श्रृंखला विद्यमान है।’ इतिहासकार केवल घटनाओ का निश्चय नहीं करता बल्कि उनकी आन्तरिक प्रवृत्तियों का उद्घाटन भी करता है। समस्त विश्व में कारण- कार्य की श्रृंखला का जाल बिछा हुआ है। अत: वास्तविक इतिहास वह है जो इन श्रृंखला की व्याख्या करता हुआ विश्व सभ्यता की प्रगति का वृत्तान्त प्रस्तुत करता है। विभिन्न विद्वानों ने विभिन क्षेत्रो की प्रतिक्रियाओं के आधार पर अपने सिद्धान्तों की स्थापना की है। हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान के लिए शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की : –
1 श्रृंगेरी मठ ( दक्षिण के रामेश्रवरम में )
2 गोवर्धन मठ ( उड़ीसा के जग्गनाथ पुरी में )
3 शारदा मठ ( गुजरात के द्वारका धाम में )
4 ज्योतिमठ ( उत्तरांचल के बद्रीनाथ में )
धार्मिक क्षेत्र मे तीन क्रांतिकारी परिवर्तन हुए :- 1. बौद्ध धर्म का विभाजन 2. हिन्दु धर्म का ह्यस 3. इस्लाम का उदय
बौद्ध धर्म : – 1. हीनयान 2. महायान 3. वज्रयान 4. सहजयान 5. मंत्रयान

हिन्दी साहित्य का इतिहास
आदिकाल का समय विद्वानों द्वारा विभिन्न प्रकार से माना गया है।
1. | ग्रियर्सन | 643 ई0 से 1400ई 0 |
2 . | मिश्र बंधु | वि ० सं० 750 – 444 ( 693 – 1387 ) |
3 . | राहुल सांकृत्यायन | 76O – 13 00 ई0 |
4 . | शुक्ल | 993 – 1318 ई0 |
5 . | रामशंकर शुक्ल ‘रसाल’ | 1000 – 1343 ई0 |
6 . | हजारी प्रसाद द्विवेदी | 1000 – 1400 ई0 |
7 . | डाॅ० नगेन्द्र | 7 वीं सदी मध्य से 14 वी सदी मध्य |
8 . | गणपतिचंद्र गुप्त | 1184 – 1350 ई0 |
9. | रामकुमार वर्मा | वि० सं० 750 – 1000 |
और पढ़ेः – हिंदी साहित्य का काल विभाजन
1. | आदिकाल / वीरगाथा काल | रामचंद्र शुक्ल |
2. | आरंभिक काल | मिश्र बंधु |
3. | प्रारंभिक काल / शून्यकाल | गणपतिचंद्र गुप्त |
4. | संधि काल / चारण काल | डॉ० रामकुमार वर्मा |
5. | सिद्ध सामंत काल | राहुल सांकृत्यायन |
6. | बीजवपन काल | महावीर प्रसाद द्विवेदी |
7. | आदिकाल | हजारी प्रसाद द्विवेदी |
8. | वीरकाल | विश्वनाथ प्रसाद मिश्र |
9. | जयकाव्य काल | रामशंकर शुक्ल ‘ रसाल’ |
10. | अपभ्रंश काल | डॉ० बच्चन सिंह, धीरेन्द्र वर्मा , गुलेरी |
11. | चारण काल ( 700 ई0 ) | ग्रियर्सन |
12. | अंधकार काल | पृथ्वीनाथ कमल ‘ कुलश्रेष्ठ’ |
13. | संक्रमण काल | रामखिलावन पांडेय , डॉ हरिश्चंद्र वर्मा |
14. | आधार काल | मोहन अवस्थी व सुमन राजे |
15. | वीरकाल / अपभ्रंश काल | श्याम सुंदर दास |
16. | संक्रांति काल | रामप्रसाद . मिश्र |
17. | आविर्भाव काल | शैलेष जेदी |
18. | उद्भव काल | वासुदेव सिंह |
19. | प्राचीन काल | शंभूनाथ सिंह |
20. | उत्तर अपभ्रंश काल | डॉ० हरीश |
आदिकाल के बारे में विशेष तथ्य
(1) हजारी प्रसाद दिवेदी एवं डॉ० नगेन्द्र के अनुसार भाषा की दृष्टि से अपभ्रंश का बढ़ाव (विकसित रूप) ही हिंदी साहित्य का आदिकाल है।
(2) हजारी प्रसाद द्विवेदी ने आदिकाल को अत्यधिक विरोधों एवं व्याघातों का युग कहा।
(3) आदिकाल को शुक्ल जी ने अनिर्दिष्ट लोक प्रवृत्ति का युग कहा
(4) प्राकृताभास हिंदी का काल – शुक्ल
(5) पुरानी हिंदी का काल – चंद्रधर शर्मा ‘ गुलेरी’
(6) “आदिकाल का समस्त हिंदी साहित्य आकृमण और युद्धों के प्रभावों की मनः स्थितियों का प्रतिफलन है।” – डॉ० नगेन्द्र
(7) ” आदिकाल का समय महाराज भोज के समय से लेकर हम्मीरदेव के समय से कुछ पीछे तक माना जाता है।” – शुक्ल
यह भी देखे : हिन्दी साहित्य के इतिहास के स्रोत
हिंदी साहित्य के आदिकाल का गद्य
आदिकाल की गघ रचना मे ‘ राजलवेल’ उक्ति व्यक्ति प्रकरण और वर्ण रत्नाकर ही उपलब्ध है । राउलवेल के रचयिता रोड़ा , उक्ति व्यक्ति प्रकरण के रचयिता दामोदर शर्मा तथा वर्ण रत्नाकर के लेखक ज्योतिरीश्वर ठाकुर है। राउलवेल एक शिलांकित कृति है , जिसका पाठ बम्बई के प्रिन्स ऑफ वेल्स संग्रहालय से उपलब्ध कर प्रकाशित कराया गया है। यह दसवीं शताब्दी की रचना है। राउलवेल से हिंदी में नखशिख वर्णन की श्रंगार परम्परा आरम्भ होती है। इसकी भाषा में हिंदी की सात बोलियों के शब्द मिलते है जिसमें राजस्थानी प्रमुख है। इसमें बनारस व आसपास के प्रदेशों की संस्कृति व भाषा पर अच्छा प्रकाश डाला है तथा उस युग के काव्य रूपों की भी थोड़ी बहुत जानकारी मिलती है। हिन्दी व्याकरण पर ध्यान उस दौर में दिया जाने लगा था , इस पुस्तक से सिद्ध होता है। ‘ वर्णरत्नाक’ मैथिली हिन्दी में रचित गद्य है जिसका सम्पादन डॉ ० सुनीति कुमार चटर्जी व पण्डित बबुआ मिश्र ने किया है। डॉ० हजारी प्रमाद द्विवेदी जी की मान्यता है कि इसकी रचना 14वीं शताब्दी में हुई होगी ।
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