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4 .सूफी काव्यधारा

सूफी काव्यधारा हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल की निर्गुण धारा का एक भाग है | निर्गुण भक्ति काल को दो भागों में बाँटा गया :- (1) सन्त काव्यधारा / ज्ञानमार्गी शाखा (2) सूफी काव्यधारा / प्रेममार्गी शाखा । सूफी काव्यधारा के कवियों ने अपनी रचनाओं में प्रेम को माध्यम बनाया । सूफी काव्यधारा आध्यात्मिक मूल्यों, ईश्वर प्रेम, और मानवता के मूल सिद्धांतों को प्रकर करती है, जो सूफी संतों के आदर्शों, भक्ति, प्रेम, और दिव्यता को व्यक्त करती है। आज मैं आपको “सूफी काव्यधारा की विशेषताऍं” के बारे में बताऊँगी ।

सूफी / प्रेमाख्यानक काव्यधारा

परिभाषा : – भक्ति काल की निर्गुण काव्यधारा के अंतर्गत जिन भक्त कवियों ने ‘प्रेम’ को ही ईश्वर प्राप्ति का एक मात्र साधन मानकर काव्य रचना की उनके द्वारा रचित काव्य को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने प्रेमाश्रयी काव्यधारा कहा है, इस तरह के काव्य की रचना करने वाले अधिकांश कवि सूफी मत से संबंधित थे अतः डॉ . रामकुमार वर्मा ने इसे सूफी काव्यधारा कहा है। ‘सूफी मत’ के संदर्भ में विद्वानों के अलग – अलग कथन है :-

(1) ” जिसे संसार से घृणा होती है और परमात्मा से प्रेम होता है उसे सूफी कहते है।” – अबुल हुसैन अननूरी

(2) ” विधि निषेधो से मुँह मोड़ना सूफी है।” – – – – अबू हनन सालूका

(3) ” एकनिष्ठ भाव से परमात्मा में ध्यान लगाना ही सूफी मत है।” — — – अबू सईद फजल्ला

(4) ” जिन कवियों ने प्रेम को ईश्वर प्राप्ति का साधन मानकर हिंदू धर्म कयाओं को आधार बनाकर काव्य रचना की उन्हें प्रेमाश्रयी शाखा के अन्तर्गत रख सकते है” – – – – रामचंद शुक्ल

(5) ” जिन्हें संसार से विरक्ति और परमात्मा से प्रेम का संदेश दिया उन्हें सूफी कहते है।” – – – – – डॉ. रामकुमार वर्मा

(6) ” परमात्मा के अतिरिक्त और किसी मे मन केंद्रित न करना सूफी मत है ।” – – – – – अबु वक्र शिवली

सूफी काव्यधारा

सूफी काव्यधारा

‘सूफी’ शब्द की उत्पत्ति

सूफी शब्द सुफ से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ ऊन, पगड़ी या चबूतरा होता है। मक्का मस्जिद के बाहर एक चबूतरा भी है इस चबूतरे पर बैठकर भक्ति परक गीत गाने के कारण ये सन्त सूफी सन्त कहलाए । कुछ विद्वान् सूफी शब्द का सम्बन्ध सोफिया शब्द से जोड़ते है जिसका अर्थ है – पवित्र अर्थात पवित्र जीवन जीने वाले सूफी कहलाते है। ‘सूफ’ से सूफ का अर्थ है – जूर / ऊन अर्थात जो ‘सूफ’ से बने हुए वस्त्र धारण करते थे तथा ससार से विरक्ति का संदेश देते थे, वे सूफी कहलाए। ‘सफ’ शब्द से ‘सफ’ का अर्थ है – – ‘अग्रिम पंक्ति’ अर्थात जो अपने पवित्र कर्मो के कारण कयामत के दिन अग्रिम पंक्ति में गिने जायेगें उन्हें सूफी कहते है। ‘सूफा’ शब्द से ‘सूफा’ का अर्थ है – ‘चबूतरा’ अर्थात मोहम्मद साहब की मजार के सामने बने हुए ‘सूफा’ पर बैठकर उपासना करने वाले सूफी है। ‘सूफ्फा ‘ शब्द से सूफ्फा का अर्थ है – – ‘तत्वज्ञानी’ अर्थात जिसे परम तत्व का ज्ञान हो वह सूफी है।

सूफी काव्यधारा की विशेषताएँ

सूफी काव्य में अधिकांश कवि मुस्लिम थे किंतु उन्होंने हिंदू प्रेम – कथाओं को आधार बनाया है। इन काव्यधारा में इश्क मजाजी ( मानवीय प्रेम) के माध्यम से इश्क हकीकी ( ईश्वरीय प्रेम) की व्यंजना है । खंडन मंडन की प्रवृत्ति का अभाव रहा। सूफी काव्य स्वछन्द प्रेम का निरूपण करने वाली साहसिक शौर्य प्रेम कथाओं के अन्तर्गत आते हैं। नारी को परमात्मा तथा पुरुष को आत्मा का प्रतीक माना गया है। नायिका प्रधान महाकाव्यों की रचना है। अधिकांश प्रेमाख्यानकों का नाम नायिका के नाम पर है, जैसे – – मधुमालती , चित्रावली, पद्मावत, कनकावती, रूपमंजरी । सभी प्रेमाख्यानों में कथानक रुढ़ियों का प्रयोग हुआ है। श्रृंगार रस तथा कहीं – कहीं शान्त रस की भी प्रधानता है। अवधी भाषा का प्रयोग तथा दोहा – चौपाई शैली का प्रयोग हुआ है। कहीं – कहीं राजस्थानी मिश्रित ब्रज भाषा भी देखने को मिलती है। इस परम्परा के काव्य प्रबन्धात्मक शैली में रचित है। कथानक रुढ़ियों का मूल स्रोत पूर्ववर्ती भारतीय साहित्य ही है। अधिकांश कवियों ने मसनवी शैली का प्रयोग किया है : –

(1) सबसे पहले ईश्वर / अल्लाह की स्तुति

(2) पैगंबर की स्तुति

(3) गुरु की स्तुति

(4) शाह – ए – वक्त की प्रशंसा

(5) आत्मपरिचय

(6) रचना काल का संकेत

(7) लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक प्रेम की व्यंजना

(8) कथा का उद्देश्य प्रकट करना

(9) प्रतीक योजना को स्पष्ट करना

(10) प्रत्येक सर्ग के अंत में आगामी कथा का संकेत

(11) कड़वक पद्धति ( 05/07 चौपाई + भिन्न छंद )

डॉ. देव नारायण शाही और गणपति चंद्रगुप्त जैसे विद्वानों ने मसनबी को कोई शैली नहीं माना बल्कि इस प्रकार के तत्वों की शुरूआत उन्होंने भारतीय रचनाओं में ही देखी तथा सूफी काव्यधारा को फ़ारसी की मसनबी शैली से अलग – थलग बताया। मसनबी शैली में सर्ग बद्धता का अभाव होता है परन्तु भारतीय सूफी काव्यधारा में वर्णित कथाओं के लिए खण्ड़ों का विभाजन देखा जा सकता है। जहाँ तक ईश्वर की वन्दना का प्रश्न है वहाँ भी कोई अभारतीय शैली नहीं, बल्कि भारतीय काव्यधारा में सदियों से यह परम्परा चली आ रही है कि रचना के आरम्भ में मंगलाचरण को रखा जाए । रचना की बाधारहित समाप्ति तथा उसकी सार्थकता के उद्देश्य से मंगलाचरण की परम्परा का निर्वाह किया जाता रहा है। आचार्य शुक्ल ने सूफी काव्यधारा के प्रेम को विवाह पूर्व का प्रेम घोषित किया जिस पर स्वछन्द, ब्राह्य, तथा लोक और समाज के प्रतिकूल प्रेम होने का आरोप लगता है। विवाह पूर्व प्रेम की परम्परा भी फारसी मसनबियों की देन नहीं क्योंकि वैदिक कथाओं से लेकर महाभारत पुराण, लोकाख्यानों में भी ऐसे प्रेम प्रसंगों की चर्चा है, जो विवाह पूर्व भी चर्चित रहे; जैसे उर्वशी व पूर्णवा का प्रेम , नल – दमयन्ती प्रेम, उदयन व वासवदत्ता का प्रेम, वसन्तसेना व चारूदत्त और भी अनेक प्रमाण है।

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सूफी काव्यधारा

सूफी काव्यधारा

सूफी काव्यधारा

सूफी दर्शन का भारत में प्रचार – प्रसार

भारत में सूफी मत का आगमन 10 वीं शताब्दी में हुआ इनके प्रचार – प्रसार का श्रेय ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती को जाता है। आइने – अकबरी में कुल 14 सूफी सम्प्रदायों का उल्लेख मिलता है जिनमें 5 प्रमुख है, जो निम्नलिखित है : —

क्र . सं.सूफी सम्प्रदायप्रचारक
1.कादरी सम्प्रदायप्रचारक अब्दुल कादिर
2.चिश्ती सम्प्रदायख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती
3.सुहरावदीं सम्प्रदायप्रचारक बहाउद्दीन जकरिया
4.नक्शबन्दी सम्प्रदायचारक अहमद फारुखी
5.सत्तारी सम्प्रदाय 

 

प्रमुख सूफी रचनाएँ , रचनाकार व वर्ष

 

क्र . सं .रचनारचनाकाररचना वर्ष
1.हंसावलीअसाइत1370 ई.
2.चन्दायनमुल्लादाऊद1379 ई.
3.ढ़ोला मारुरा दूहाकुशललाम1473 ई.
4.सत्यवती कथाईश्वरदास1501 ई.
5.मृगावतीकुतुबन1503 ई.
6.माधवानल कामकलन्दागणपति1527 ई.
7.पद्मावतमलिक मोहम्मद जायसी1540 ई.
8.मधुमालतीमंझन1545 ई.
9.रूपमंजरीनन्ददास1568 ई.
10.छिताई वार्तानारायण दास1590 ई.
11.चित्रावलीउस्मान1613 ई.
12.रसरतनपुहकर1618 ई.
13..ज्ञानदीपशेखनबी1619 ई.
14.हंस जावाहिरकासिम शाह 
15.इन्द्रवतीनूर मोहम्मद1744 ई.
16.अनुराग बाँसुरीनूर मोहम्मद1764 ई.
17.कथा रूपमंजरीजानकवि 

पद्मावत:-

इस ग्रन्थ की रचना मलिक मोहम्मद जायानी ने 1540 ई. में की। इस ग्रन्थ में चितौड़ के राजा रत्नसेन एवं सिहल द्वीप की कन्या पद्‌मावती के प्रेम विवाह व विवाह के पश्चात् के जीवन का मार्मिक चित्रण हुआ है। कथावस्तु दो भागों में वर्णित है। प्रथम भाग में रत्नसेन व पद्‌मावती के विवाह की चर्चा है, तथा दितीय भाग में अलाउद्दीन की चित्तौड़ पर चढ़ाई की चर्चा है। डॉ. हरदेव बाहरी की मान्यता है कि पद्मावत की कथा पर प्राकृत भाषा में रचित रत्नशेखर कथा का प्रभाव है। यह अवधी भाषा में रचित महाकाव्य है। यह एक रूपक काव्य है। सारे पात्र प्रतीक रूप में हैं । रत्नसेन जीवात्मा, पद्‌मावती परमात्मा तथा अलाउद्‌दीन आसुरी शक्ति के प्रतीक है। पद्मावत के अतिरिक्त जायसी के ग्रन्थों में अखरावट, आखिरी कलाम, चित्ररेखा, कहरानामा , मसलानामा प्रमुख है। आखिरी कलाम में कथायत का वर्णन है।

 

सूफी काव्यधारा

पद्‌मावत

चन्दायन

यह प्रेमाख्यानक परम्परा का काव्य है जिसकी रचना मुल्ला दाऊद ने 1379 ई. में की डॉ. माता प्रसाद गुप्त ने इस ग्रन्थ का मूल नाम लोर कथा माना है। डॉ. परमेश्वरी लाल गुप्त ने इसका एक पाठ ‘ चन्दायन’ नाम से प्रस्तुत किया है। डॉ. माता प्रसाद गुप्त ने विभिन्न दृष्टियों से सूक्ष्मतापूर्वक विचार करते हुए इसे भारतीय परम्परा का आख्यान सिद्ध किया है। इसमें नायक का नाम लोर तथा नायिका का नाम चन्दा है। दोनों का उन्मुक्त प्रेम इसमें प्रस्तुत किया गया है। प्रथम दर्शन में ही दोनों के बीच प्रेम की उत्पत्ति तथा विभिन्न व्यक्तियों द्वारा उनके प्रेम में बाधा, नाग द्वारा नायिका को डस लेना एवं गारुड़ी द्वारा उसे ठीक करना का बड़ा ही रोचक वर्णन किया है। इस ग्रन्थ की भाषा अवधी है। इसकी शैली कडवक है। इस शैली में पाँच अद्धालियों के बाद एक दोहा है। पूर्णतः भारतीय परम्परा का अनुसरण करने वाला यह ग्रन्थ है। इसमें सूफी काव्य की मसनबी शैली का प्रयोग नहीं हुआ है।

मृगावती

मृगावती की रचना 1503 ई. में कुतुबन ने की। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी मृगावती को प्रेमाख्यानक काव्य परम्परा का प्रथम ग्रन्थ मानते हैं जबकि डॉ. नगेन्द्र ने हंसावली ( असाइत) को प्रथम ग्रन्थ माना है। मृगावती कथा का नायक चन्दगिरि के राजा गणपतिदेव का पुत्र नायिका मृगावती कंचनपुर के राजा रुपमुरारि की राजकुमारी पर मोहित हुआ। यह राजकुमारी उड़ने की विद्या जानती थी। अनेक कष्ट झेलने के बाद राजकुमार उसके पास तक पहुंचता है। एक दिन मृगावती राजकुमार को धोखा देकर कहीं उड़ गई। राजकुमार उसकी खोज में योगी होकर निकला। समुद्र से घिरी एक पहाड़ी पर पहुंचकर उसने रुक्मिनी नाम की एक सुन्दरी को राक्षस से बचाया । उस सुन्दरी के पिता ने राजकुमार के साथ उसका विवाह कर दिया । अन्त में राजकुमार उस नगर में पहुँचा जहाँ अपने पिता की मृत्यु पर राजसिंहासन पर बैठकर मृगावती राज्य कर रही थी। वहाँ वह 12 वर्ष रहा । पता लगने पर राजकुमार के पिता ने घर बुलाने के लिए एक दूत भेजा। राजकुमार पिता का सन्देश पाकर मृगावती के साथ चल पड़ा और उसने मार्ग में रुक्मिनी को भी ले लिया। राजकुमार बहुत दिनों तक आनन्दपूर्वक रहा। अन्त में वह आखेट के समय हाथी से गिरकर मर गया। उसकी दोनों रानियाँ प्रिय के मिलने की उत्कण्ठा में बडे आनन्द के साथ सती हो गई। इस ग्रन्थ की परिणति शान्त रम में है क्योंकि नायक मर जाता है व रानियाँ सती हो जाती है। यह ग्रन्थ अवधी भाषा में लिखा गया है। इस ग्रन्थ में भी कड़वक शैली का प्रयोग हुआ है।

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धुमालती

इस ग्रन्थ की रचना मंझन ने 1545 ई. में की । इसमें नायक – नायिका के प्रथम दर्शनजन्य प्रेम के साथ – साथ पूर्वजन्य के प्रणय संस्कारों की भी महत्ता दिखाई गई है। नायक का नाम मनोहर व नायिका मधुमालती है। मनोहर नायिका मधुमालती को एकनिष्ठ प्रेम करता है। वह एक ओर तो मधुमालती की प्राप्ति के लिए भाँति – भाँति के कष्ट सहता है तथा दूसरी ओर वह महासुन्दरी प्रेमा के प्रेम प्रस्ताव को ठुकरा देता है। सामान्यत : प्रेमाख्यानों में नायक को बहुपत्नीवादी दिखाया जाता है परन्तु यह प्रेमाख्यानक इसका अपवाद है। प्रेमाख्यानों की परम्परागत रूढ़ियों में से नायक का योगी होकर घर से निकलना, किसी अन्य राजकुमारी को राक्षस से बचाना, माँ के शाप के कारण नायिका के पक्षी हो जाने आदि का निर्वाह इसमें मिलता है। कवि का मूल उद्देश्य प्रेम के उच्च व उदात्त स्वरूप को प्रकट करना है। इसमें वह सफल भी होता है। काव्य की भाषा अवधी तथा दोहा – चौपाई शैली का प्रयोग हुआ है।

निष्कर्ष

आज हमने भक्तिकाल के प्रेमाख्यानक काव्यधारा / सूफी कवियों की परिभाषा, सूफी शब्द की उत्पत्ति व सूफी शब्द का अर्थ, सूफी मत के बारे में अलग – अलग विद्वानो के कथन , सूफी काव्यधारा की विशेषताऍं आदि के बारें में पढ़ा । इसके साथ ही हमने प्रमुख सूफी काव्य ग्रन्थों के बारे मे पढ़ा । हमारे blog में प्रमुख सूफी रचनाऍं, रचनाकार व वर्ष की जानकारी दी गई है। यदि आपको इसके अलावा किसी अन्य विषय की जानकारी चाहिए तो हमे commet द्वारा बताइए।

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