Skip to content

परम्पराएं

मेरी यह कविता उन सबके लिए है जो जिन्दगी में परम्पराओ की बेड़ियों मे फंसे अकेलापन महसूस कर रहे हैं। मैं अपने शब्दो के माध्यम से उनसे कहना चाहती हूँ कि वह अपने अंतर्मन को पहचाने, अपने दोस्त खुद बने और जिन्दगी में आगे बढ़े। पीढ़ी – दर – पीढ़ी चली आ रही परम्पराओं को तोड़कर अपने लिए जो सही है वह रास्ता बनाए और उस पर दुनिया का फिक्र किए बिना चले ।

परम्पराएं

दूसरो के रास्ते पर चलने वालो खुद रास्ता बनान सीखो,

वे ही जीवन में आगे बढ़ते है जो अपना मार्ग खुद बनाते है।

परम्पराओं में जो चलते है उनके बीच दबे रह जाते है,

.परम्पराओ में जो परिवर्तन करना ही जीवन का मूल सिद्धान्त है ।

और कविता पढे : – चाहत

ये वक्त किसी का इंतजार नहीं करता रेत की तरह फिसल जाता है।

सिंह तो हमेशा अकेला रहता है और जंगल का राजा कहलाता है

जीवन में मुश्किल आए तो याद रखना संघर्ष ही जीवन का सहारा होता है ।

दूसरों पर निर्भर रहनेवले एक कदम भी नहीं चल सकते,

जीवन में आगे वही निकलते है जो पीछे मुड़ कर नहीं देखते ।

जिन्दगी बोझ मत समझो जिन्दगी एक साधना है

इसको गहराई से समझो क्योकि करनी इसकी अराधना है ।

….. डॉ. मानवती निगम

2 thoughts on “परम्पराएं”

  1. Pingback: चाहत

  2. Pingback: खामोशी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *