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माँ सिर्फ तुम

माँ सिर्फ तुम

आज की कविता माँ की याद दिलाती हुई माँ को समार्पित है । माँ की रचना भगवान ने बच्चे की ढाल के रूप में की है जो अपने बच्चे पर आँच भी नहीं आते देती । माँ जननी , पालनहार , दुख हरने वाली तथा पहली शिक्षिका (Teacher) होती है। अपने बच्चों की पीड़ा को दूर से ही समझ जाती है कि उसके बच्चे को क्या चाहिए इसीलिए जन्म के बाद बच्चे के मुख से निकला पहला शब्द ही माँ होता है – माँ माँ माँ

माँ सिर्फ तुम

माँ सिर्फ तुम

माँ सिर्फ तुम 

माँ सिर्फ तुम  !
समझती थी मेरी पीड़ा
बचपन में मै न जाने कितनी बार गिरा
उठाती थी तुम मुझे
हाथ पकड़कर हर बार
माँ तूने ही मुझे चलना सिखाया
हर बार एक नयी राह दिखायी

 

चोट लगकर जब खून बह आते
तब तू ही आँचल फाड़कर
मरहम – पट्टी थी लगाती
याद है मुझे तू भी मेरे दर्द से
कराह उठती थी
दुःख है मुझे
मेरे दुःख से
तू भी दुःखी हो जाती थी
मैने तुम्हीं से सीखा दुःख को सहना
माँ तुम्हें सदियों तक
मेरी स्मशतियों में है रहना

आज तुझसे दूर बैठा हूँ
भूख से अतरी जल रही है
अन्न नहीं मुझसे है पकता
खाने के समय हर जालिम मुझ पर
है बकता
सीख लिया है मैने अब
तेरी स्मशतियों से खाना बनाना

रोज – रोज मैं करता हूँ यह बहाना
कौन ? बनायेगा मेरे लिये खाना
मत कह ! जान गया हूँ मै
तुझ जैसे परोस न पायेगी वह
तेरे प्यार के स्नेह में
मुझे वह न भायेगी माँ

 

  माँ सिर्फ तुम !
समझती हो मेरी पीड़ा !

 

….महावीर सिंह

 

 

2 thoughts on “माँ सिर्फ तुम”

  1. Pingback: कबीर दास

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