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बलिदान

 दिन में सूरज देता उजाला
 उस का हम पर उपकार निराला
  रात में चाँद की है चाँदनी
कभी उसने क्या इसकी कीमत माँगी

मेघ बरस कर चले जाते है 
प्यासों की प्यास बुझा जाते है
खुद बरान कर खत्म हो जाते है
बदले में कभी कुछ न माँगते है ।

फलो से लदी लताओं को देखो
इन्होंने सीखा है देना दान
प्यारे - प्‍यारे फूलों को देखो
इन्होंने सीखा है बस देना बलिदान

बहती नदियों को देखो
जीवन दान सबको देती जाती
अपने इस काम का उसने
क्या कभी हमने हिसाब माँगा है।

उन दूर तारों को देखो
जो अंबर में चमचमाया करते हैं 
उन्हे देखकर हर कोई
वहाँ जाने की सोचा करते हैं।

देश के वीर जवानो से पूछो 
कैसे खाते है सीने में गोली
फिर भी करते है देश की रखवाली
बदले मे कुछ न माँगा होगा कभी

महान व्यक्ति कभी किसी से
अपने किए का बदला नहीं माँगते
अपने उपकारों को वह तो
करके भूल जाया करते हैं।

कहानी भी पढ़े  : -  कहानी पम्मी की

.... डॉ० मानवती निगम

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