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संसार में आना और चले जाना जगत की एक प्रक्रिया है। जिंदगी जीना और जिंदगी काटना दोनो में बहुत फर्क है। अधिकतर लोग संसार में अपना समय काटते है और चले जाते है जिंदगी को सही ढंग से जीते नहीं। दूसरी तरफ कुछ लोग अपनी हर इच्छा पूरी करते हुए जिंदगी जीते भी है लेकिन अपनी पहचान नहीं बना पाते । दूसरो की तरफ ताका-झाँकी में अपनी जिंदगी पूरी करके चले जाते है लेकिन अपनी तरफ कभी नहीं देखते कि मैं क्या हूँ और मुझे क्या करना चाहिए। इन्ही विचारो को मैं ” पहचान” कविता के माध्यम से शब्द दे रही हूँ।

पहचान

चाहते हो अगर तुम जग में तुम्हारा नाम हो
तो जरूरी है कि कुछ अलग सी पहचान हो।

जग में आना जग से जाना साधारण सी बात है
कुछ अलग करके दिखलाना इनमें कुछ खास बात है।

बसने बसाने में उम्र निकल जाती है यू तो सभी पेट भरते है
कर्म अधूरे जो करते है अंत समय पछताते हे । 

अपने स्वार्थ को छोड़कर निस्वार्थ में जो जीते है
आगे चल कर हमेशा वे ही याद किए जाते है

ऐसे दीपक बनो तुम जग को ज्योर्तिमय कर दो
जीवन के पथ मे फूल है कम, काँटे है ज्यादा

काम किसी के आ जाए और दुख में भी न घबराये
इंसान वही है जो गिर कर खुद ही संभल जाये

दुसरों के दुख को हरकर खुशियों की खुशबू महकाना
मानव ही रहना सदा तुम कभी दानव मत बन जाना

चाहते हो कामयाबी पाना बस प्रयत्न करते जाना
वक्त का इंतजार मत करना बस आगे बढ़ते जाना

जिसमें हो लगन तुम्हारी ध्यान उसी पर केन्द्रित रखना
डगमगाएगे कदम तुम्हारे पर तुम पथ से मत भटकना

….. डॉ o  मानवती निगम 

4 thoughts on “पहचान”

  1. Pingback: कविता – किस काम के

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