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जैन साहित्य

जिस प्रकार हिंदी के पूर्वी क्षेत्रों में सिद्धों ने बौद्ध धर्म के वज्रयान मत का प्रचार हिंदी कविता के माध्यम से किया उसी प्रकार पश्चिमी क्षेत्र में जैन साधुओं ने अपने मत का प्रचार हिंदी कविता के माध्यम से किया । आदिकालीन जैन साहित्यिक रचनाएँ आचार, रास, फागु , चरित आदि विभिन्न शैलियों में मिलती है।
आचार शैली में घटनाओं के स्थान पर उपदेशात्मकता को प्रधानता दी जाती है। फागु व चरित काव्य शैली सामान्यता के लिए प्रसिद्ध है | रास शब्द संस्कृत में क्रीडा और नृत्य से सम्बन्धित था। भरतमुनि ने इसे क्रीडानीयक कहा। जैन साधुओ ने ‘रास’ को एक प्रभावशाली रचनाशैली का रूप दिया। जैन तीर्थकारों ने जीवन चरित तथा बैष्णव अवतारों की कथाएँ जैन आदर्शों के आवरण में ‘रास’ नाम से ही पद्यबद्ध की गई थीं। चौदहवीं शताब्दी तक इस पद्धति का प्रचार रहा इसलिए जैन साहित्य का सबसे लोकप्रिय रूप ‘रास’ ग्रन्थ बन गया। वीरगाथाओं में ‘रास’ को ही रासो कहा गया, परन्तु उनकी विषय भूमि जैन रास ग्रन्थों से भिन्न हो गई थीं। आदिकालीन जैन साहित्य मे ‘ भारतेश्वर बाहुबली रास’ को जैन साहित्य की रास परम्परा का प्रथम ग्रन्थ माना जाता है। इसकी रचना 1184 ई. में शालिभद्र सूरि ने की थी।
जैन साहित्यिक रचनाएँ

जैन साहित्यिक रचनाएँ

Table of Contents

 

महावीर स्वामी के अनुयायियों द्वारा रचित काव्य ही जैन साहित्य है। जैन धर्म आहिंसा, दया और धर्म का आधार रहा।

आदिकालीन जैन साहित्यिक रचनाएँ

क्र . स
रचनाकार
कवि
रचनाकाल
1 .
श्रावकाचार, दर्शनसार, लघुनय सार
दवसेन
933 ई0
2.
भारतेश्वर बाहुबली रास, बुद्धि रास, पंच पांडव चरित रास
शालिभद्र सूरी
1184 ई0
3.
नेमिनाथ चौपाई
विनय चंद्र सूरि
1200 ई0
4.
चंदनबाला रास, जीवदया रास
आगसु
1200 ई0
5.
स्थूलिभद्र रास
जिनधर्म सूरि
1209 ई0
6.
रेवंत गिरि रास
विजय सेन सूरि
1231 ई0
7.
नेमिनाथ रास, कुमारपाल चरित, देशीनाम माला कोष
सुमति गणि
12 वीं शताब्दी
8.
कुमारपाल प्रतिबोध
सोमप्रभा सूरि
13 वीं शताब्दी
9.
प्रबंध चिंतामणि
मेरुतुंग
13 वीं शताब्दी
10.
करकंड चरित
कनकामर मुनि
13 वीं शताब्दी
11.
कच्छुली
प्रज्ञा तिलक
 
यह भी पढे : – हिंदी का आदिकालीन साहित्य

जैन साहित्य की विशेषताएं

  1. जैन साहित्य को रास साहित्य भी कहा जाता है।
  2. इनके साहित्य का मुख्य कथानक ‘जैन पुराण’ है।
  3. इस धर्म में प्रमुख तत्व अहिंसा है।
  4. इन्होंने आध्यात्मिक उच्चता पर बल दिया है।
  5. मूर्ति पूजा विरोधी होने पर भी तीर्थकरों की मूर्ति पूजा प्रचालित है ।
  6. कर्मकांड व पशु बलि के विरोधी है ।
  7. ‘अहिंसा परमो धर्म’ का संदेश मुख्य लक्ष्य है।
  8. भारत में प्रचलित एकमात्र ‘नास्तिक धर्म’ है ।
  9. जैन साहित्य चार रूपों और चार शैलियों में प्रचलित है : – आचार, चरित, रास, फागु
 

जैन साहित्यकार

शालिभद्र सूरि : –

गणपति चन्द्र गुप्त ने इन्हें हिन्दी का प्रथम कवि कहा है। बुद्धि रास, भारतेश्वर बाहुबली रास की इन्होंने रचना की और इनका रचनाकाल 1184 ई0 है। ‘ भारतेश्वर बाहुबली रास’ जैन साहित्य की रास परम्परा का प्रथम ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में अयोध्या के राजा भारतेश्वर के संघर्ष के साथ जैन धर्म ग्रहण करने की गाथा वार्णित है। 205 छन्दों में रचित यह एक सुन्दर खण्डकाव्य है। वीर, शांत, श्रृंगार रस की प्रधानता है।

देवसेन : –

मुनि देवसेन मालवा प्रदेश के निवासी थे और 10 वीं शताब्दी में विद्यमान थे। ‘दर्शन सार ग्रंथ’ की रचना देवसेन ने धारा नगरी के पार्श्वनाथ मंदिर में बैठकर सवत् 990 में की थी । ‘श्रावकाचार’ नामक प्रसिद्ध काव्य की रचना देवसेन ने की । इसका रचनाकाल 933 ई0 है। इस ग्रन्थ में 250 दोहो में श्रावक – धर्म का प्रतिपादन किया गया है। ये एक अच्छे कवि व उच्चकोटि के चिन्तक थे। अपभ्रंश में इन्होंने ‘ दब्ब सहाव प्यास’ नामक काव्य लिखा । अन्य रचनाएँ लघुनयन चक्र व दर्शनसार है। डॉ. नगेन्द्र ने श्रावकाचार को हिन्दी की पहली रचना माना है।

आसगु : –

आसगु क़े प्रमुख ग्रथ : – चन्दनबाला रास, जीवदया रास है। इनका रचनाकाल का समय 1200 ई0 के आस – पास है। कौशाम्बी की राजपुत्री चंदनबाला का अपहरण होने तथा मगध के सेठ महावीर के हाथों बिक जाना, भीषण कष्ट झेलते हुए उनके ब्रह्मचर, संयम, सतीत्व और उत्कर्ष तथा जैन से शिक्षा ग्रहण करना आदि कथा का वर्णन किया गया है। इसमें 30 -35 छंदो से संबंध रखने वाला लघु खण्डकाव्य लिखा गया है जिसमें करुण रस की गंभीर व्यंजना हुई है।

जिनधर्म सूरि : –

स्थूलिभद्र रास की रचना जिनधर्म सूरि ने 1209 ई0 में की। यह जैन तीर्थकारों की जीवन काव्य शैली में वर्णित है । ( यह सिद्ध करना की मोक्ष प्राप्ति में भोग लिप्सा सबसे बडी बाधा हैं। )

विजयसेन सूरि : –

रेवंतगिरी रास इनकी प्रसिद्ध रचना है जिसका रचनाकाल 1233 ई0 है । इस काव्य में तीर्थंकर नेमिनाथ की प्रतिमा तथा रेवन्तगिरि तीर्थ का वर्णन है । यात्रा तथा मूर्ति स्थापना की घटनाओं पर आधारित यह ‘रास’ वस्तु कलात्मक सौन्दर्य का भी आकर्षण प्रस्तुत करता है।

सुमति गणि :-

नेमिनाथ रास की रचना सुमति गणि ने 1213 ई0 में की थी । 58 छन्दों की इस रचना में कवि ने नेमिनाथ का चरित्र सरस शैली में वर्णित किया है। नेमिनाथ के प्रसंग में श्रीकृष्ण का वर्णन इस काव्य का विषय है । रचना की भाषा अपभ्रंश से प्रभावित राजस्थानी हिन्दी है।

जिनधर्म सूरि : –

जिनधर्म सूरि ने ‘स्थूलिभद्र रास’ की रचना 1209 ई0 में की। 13 वीं शताब्दी के बाद इन्होंने जिनधर्म सूरि फागु की रचना की। यह फागु परम्परा का आदि ग्रन्थ माना जाता है।

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