मैने यह कविता जिन्दगी में हम जो चाहते है वह न मिलने वालो के लिए लिखी है। जो चाहते है वह मिलता नहीं यदि सब मिल गया तो उम्मीद व चाह खत्म हो जाएगी। जैसी हम सोचते है जिन्दगी वैसी नहीं होती, जिन्दगी उसके विपरीत होती है।

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चाहा था जैसा मैने जिन्दगी मुझे वैसी नहीं मिली
अपनो की ही सूरत मुझे अजनबी मिली।
मैं अपने दुख – दर्द किसको क्या सुनाऊँ
सबको मुझमें ही कमी और शिकायत मिली ।
पानी थी कामयाबी की मंजिल मुझे भी
पर राह मे खड़ी हज़ारों मुश्किले मुझे मिली ।
अक्सर सोचा करती हूँ क्यों मैं दुनिया से डरती हूँ
जो पार लगा दे मेरी वो कश्ती मुझे नहीं मिली।
हमने भी सजाया ना मुहब्बत का आशियाना
धूप ही धूप रही जिन्दगी में पर छाँव नहीं मिली।
जिस शख्स को वफा की सूरत समझते थे
उससे ही बुराई और तन्हाई मुझे मिली।
…. डॉo मानवती निगम
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