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खामोशी

किसका क्या करे भरोसा

कौन साथ निभाता है

अंधकार जब होता है

खुद का साया भी तब

खुद से जुदा हो जाता है ।

इस दुनिया का देखो रिवाज

टूटे हुए को और तोड देते है

लेकिन उसके दर्द को

कोई कम नही करता

जब इंसान होता है अकेला

तो वह ढूढ़ता है सहारा

देखो कुदरत का क्या है करिश्मा

कही भी उसे मिलता नहीं किनारा

हर दर्द का इलाज़ नहीं होता

तो फिर वे सहारा ही क्यो ढूढ़ते है

जिनका कोई सहारा नहीं होता

जब मिलती है अपनो से चोट

तो जीवन हो जाता है खामोश

. . . . . डॉ. मानवती निगम

कविता पढे : – परम्पराएं

2 thoughts on “खामोशी”

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