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क्या करोगे

    कल्पना छोटी कर लोगे तो जीवन में क्या करोगे
कौन लाएगा मोती सागर तल से, खड़े लहरो को देख घबराओगे ।

इच्छाओं को अगर मरोगे तो जिन्दगी भी मर जाएगी
किस आशा को पूरा करोगे जब अभिलाषा ही नहीं होगी ।

चींटी गिर कर बार - बार चढ़ती है , हारती पर हौसला नहीं खोती है
लगातार प्रयत्न करने के बाद एक दिन मंजिल पर होती है ।

पंतगा बार बार लौ के पास जाता है दर्द मिले पर चाहत कम नहीं करता है
जल कर प्राण न्यौछावर कर जाता है फिर भी अपनी हार नहीं मानता है।

दुख मिले , दर्द मिले नाकामयाबी में भी मायूस मत होना
क्योंकि पतझड़ के बाद बहार को आना ही होता है।

और कविता पढे : - ज़िन्दगी

..... डाॅ o मानवती निगम


 
 

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