Skip to content

कहानी पम्मी की

सर्दियों का समय था मैं और पम्मी चुस्कियों के साथ चाय पी रहे थे। ( पम्मी मेरी कामवाली बाई )

बात उस समय की है जब में पंजाब राज्य के जालंधर जिले मैं रहती थी। पम्मी हमारी कामवाली बाई, बहुत ही अच्छे स्वभाव की ३५ वर्षीय युवती थी। घर का काम भी बहुत ही अच्छे से करती थी मुझे भी वह पसंद थी। मेरी छोटी बेटी उसे बहुत पसंद थी। जो अभी सात महीने की थी। घर में आते ही पहले उसे गोद में उठाना बाद में काम करना उसकी रोज की आदत थी। मेरी बेटी भी उसे बहुत पसंद करती थी। बेटी को भी मानो उसकी आदत सी हो गई थी। दीदी आपकी बेटी बहुत ही प्यारी है, पम्मी उसे प्यार से रोज निहारती और अक्सर मुझसे यही कहती। एक दिन मैने उससे उसके परिवार और बच्चों के बारे में पूछ लिया। बड़े ही रुआंसे स्वर में बोली …… मेरी भी एक बेटी थी ! बेटी थी का क्या मतलब, अब कहाँ है ? ( मैने जिज्ञासु स्वर में पूछा) मेरे इतना पूछते ही वह भावुक हो गई और रोने लगी। मैं समझ गई की दिल की गहराइयों तक चोट लगी है।

कविता पढे : – ज़िन्दगी

बड़ी ही संवेदनशील व्यथा थी ! उसका एक १५ वर्षीय बेटा था जो दसवीं कक्षा में पढ़ता था। एक बेटी भी थीं जो उसके साथ नही रहती थी। अपनी दास्तान शुरू करते हुए पम्मी बोली दीदी मेरी दो शादियां हुए थी। मेरा पहला पति बहुत ही अच्छा था ! मुझे बहुत ही प्यार करता था, मेरा बड़ा ख्याल रखता था। जब मैं गर्भवती हुई तो वह बड़ा खुश हुआ गर्भावस्था में जो मेरा मन किया उसने लाकर दिया। मेरे लिए हर वो काम करता था जो मुझे पसंद था, मैचिंग की चूड़ियां और सैंडल मेरे पास हुआ करते थे। वह एक कैमिकल फैक्ट्री में काम करता था। शादी के दो साल बाद मेरा बेटा हुआ, मेरा पति बहुत ही खुश था। उसके लिए नए नए खिलौने लाया करता था। कहते है ऊपर वाला जिंदगी में खुशी के पल कम ही देता है। एक दिन फैक्ट्री में जहरीली गैस का रिसाव हो गया और दो लोगो का देहांत हो गया, उसमे एक मेरा पति भी था। पति की मौत की खबर से मानो मेरी दुनियां ही उजड गयी। मेरी दुनिया शुरू ही हुई थी कि हवा के एक झोखे ने सब कुछ उजाड़ दिया। मेरा बेटा मात्र दस महीने का था। इतनी कम उम्र में पति का साथ छूट जाना मेरे लिए किसी अभिशाप से कम नहीं था। दो दिन मै बेहौश रही! मुझे समझ ही नही आया की यह क्या हो गया। बच्चे के सिर से पिता का साया उठ जाना मानो उसका बचपन ही चला गया। फैक्ट्री के मालिक मेरे घर आए । उन्होंने बच्चे की परवरिश के लिए २० लाख रुपए मुआवजे के तौर पर देने के लिए कहा। मेरी स्थिति ऐसी नही थी की में कुछ पूछ – ताछ कर सकूं। मेरे ससुराल वाले बहुत तेज थे, मेरी परिस्थिति का फायदा उठाया और बड़ी ही चालाकी के साथ मुझसे कुछ कागजादो पर अंगूठा लगवा लिया । बाद में मुझे पता चला कि सारा पैसा ससुराल वालो ने अपने नाम करवा लिया। मैं चुप रही और बेटे के साथ अपना समय काट रही थी परंतु रोज रोज मुझे ताने दिए जाते थे। एक दिन मुझे अपशगुन कहकर बेटे सहित घर से निकाल दिया। मै अपने मायके चली आई, कुछ समय बाद वहाँ भी परिवार में मेरी चर्चा होने लगी कि मेरी आगे की जिन्दगी कैसे कटेगी ।

मायके में मेरे दो बडे भाई और एक छोटी बहन थी। मेरी माँ मुझे अपने साथ रखना चाहती थी और भाई शादी करना चाहते थे। माँ बाप कब तक सहारा देते । मेरे भाइयों ने दूसरा लड़का देखा और मेरी दूसरी शादी कर दी । मेरा दूसरा पति रोज़ शराब पीकर आता, रोज मारपीट करता । जो भी कमाता था शराब और जूए मे उजाड़ देता । कुछ समय बाद वह मुझसे मेरे बेटे को अलग करने की बात कहने लगा। ससुराल वाले भी उसकी बात का समर्थन करने लगे । कहने लगे कि मैं अपना बेटा अपने मायके छोड आऊँ और उसके साथ नये परिवार की शुरुआत करूँ । मैं अपने बेटे को कैसे अलग कर सकती थी ! मेरे जिगर का टुकड़ा है। अब क्या था …. रोज़ का क्लेश होता और वह मुझे रोज किसी न किसी बहाने से पीटता । मैं रो – रोकर अपनी किस्मत को कोसती रह जाती । इसी तरह तीन साल बीत गए, मेरी सास कहने लगी – हमारे घर का वारिस पैदा कर इस लड़के को हम कोई हक नही देगे। मैने फिर गर्भधारण किया और मुझे प्यारी सी बिटिया पैदा हुई। बेटी के पैदा होने से मेरी सास ज्यादा खुश नही थी और न ही पति की बेरुखी में कोई बदलाव था । समय बीतता गया बेटी तीन साल की हो गई तब मैं दोनों बच्चों का स्कूल में दाखिला करवाने गयी , वहाँ मैडम ने दोनो बच्चों के पिता का नाम अलग – अलग देखा तो वह मुझे तरह तरह की बातें सुनाई, मेरा मजाक बनाया और आपस में मेरी बातें करके हंसने लगी। मुझसे कहती एक – दो शादी और कर ले उनके भी बच्चे हो जाएगे। मुझे बहुत बुरा लगा पर मैं क्या कर सकती थी । इधर घर पर पति ने मेरा सुख चैन छीन रखा था । रोज – रोज़ की गाली – ग्लोज और मारपीट से तंग आकर मैने उसे छोड़ने का फैसला किया । मैने सोचा इससे अच्छी जिंदगी में घरों मे झाडू – पोछा लगाकर काट लूँगी। मैं जब उसे छोड़कर आई तो ससुराल वालों ने मुझे मेरी बेटी देने से इंकार कर दिया। मुझे मजबूरन अपनी बेटी को छोड़कर आना पड़ा, तभी से मैं झाडू पोछा लगाकर अपनी जिन्दगी चला रही हूँ अपने बेटे को पढ़ा रही हूँ। कई बार मैने अपनी बेटी से मिलने की कोशिश की पर मैं उससे नही मिल सकी। मेरी आँखे उसे आज भी देखने को तरसती है वह तो मुझे भूल भी गई होगी। एक साल बाद दूसरे पति की भी मृत्यु हो गयी। मैने अपनी बेटी लाने की कोशिश की परन्तु उन लोगो ने मुझे मेरी बेटी नहीं दी।

कविता पढ़े : – एकान्त

तुम्हारी बेटी कभी किसी से पूछती नहीं कि….. मेरी माँ कहाँ है । ( मैने पूछा )

पम्मी बोली …. मेरी ननद के बच्चे नहीं हुए सुनने में आया कि वह ले गयी थी मेरी बेटी को । सात साल की हो गई होगी अब ।

अपनी दुख भरी दास्तान सुनाकर पम्मी घर के काम में लग गयी पर उसकी कहानी मेरे दिल को छू गई और मैं सोचने लगी कि कभी कभी इंसान कितना मजबूर हो जाता है कि उसे अपनों में भी चुनाव करना पड़ता है। एक माँ को अपने बच्चे से अलग होना कितना मुश्किल रहा होगा। हम सब के घरों में कामवाली बाई आती है पर हम कभी भी उनकी परेशानी व कठिनाईयो से भरी जिंदगी को समझने की कोशिश नहीं करते।

2 thoughts on “कहानी पम्मी की”

  1. Pingback: बलिदान

  2. Pingback: सर्प की अनोखी कहानी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *