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कविता – मैं

यह कविता मेरी स्वरचित कविता है। मैं यहाँ जो भी कविता व कहानी लिखती हूँ वह मौलिक है। इस रचना के माध्यम से मैं एक लड़की की व्यथा कहना चाहती हूँ कि उनकी स्थिति कैसी है वह कैसा महसूस करती है । वह सोचती है कि ” मैं” क्या हूँ, मेरा अस्तित्व क्या है। आशा है कि आप सभी को यह पसंद आएगी।

 मैं वह तारा हूँ जो सबको दिखता है 
देखते ही देखते वह अंबर में कहीं छुप जाता है ॥

मैं वह पंछी हूँ जिसका आज यहाँ है बसेरा ।
उसको भी नहीं मालूम कल कहाँ होगा सवेरा ॥

मैं वह फूल हूँ जो पेड़ से जुदा हो जाता है ।
किस माला में बंधेगा उसको अहसास नहीं ॥

मैं वह बहती धारा हूँ जिसका कोई किनारा नहीं ।
कहाँ जाकर मिलेगी किसी को कुछ पता नहीं ॥




 मैं वह पतंग हूँ जो दिखती है आकाश में ,
लेकिन उसकी डोर होती है किसी ओर के हाथ में ।

मैं वह दूटा पत्ता हूँ दिशा जिसकी पता नहीं,
उड़ा चला जाता है जिस तरफ हवा ले जाती है ।

मैं वह पंथी हूँ जिसका कोई ठिकाना नहीं ,
किसको क्या सुनाए हम दुख ही जीवन की व्यथा रही ।

मैं वह प्रश्न हूँ जो निरुत्तर है
अरमान बह गए पानी में यही मेरी कहानी है।

उमंग है न कोई आशा ! न कोई अभिलाषा
मिलती हमेशा निराशा , यही जीवन की परिभाषा है ।

..... डाॅ . मानवती निगम

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1 thought on “कविता – मैं”

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