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कविता – किस काम के

मेरी यह कविता स्वरचित है। मैं कहानियाँ व कविताएं लिखती हूं। मेरी कहानियाँ सामाजिक व मौलिक है। अभी मैं एक कविता प्रस्तुत कर रही हूं उसका शीर्षक है “किस काम के” । इस कविता के माध्यम से मैं बताना चाहती हूं कि किस – किस चीज़ का कितना महत्व है और वह कितना एक दूसरे से जुड़ी हुई है।

और कविता पढ़े : – पहचान

 किस काम के    

जिन आँखो में पानी न हो
वो नयन किस काम के ।
जहाँ शांति , प्रेम न हो
वह सुंदर भवन किस काम के ॥

रात मे चांदनी न होती
तो चाँद किस काम का ।
अगर ज्योति न हो सोचो
तो दीपक किस काम का ॥

जिन में प्यार न हो
वो रिश्ते किस काम के ।
जहाँ मंजिल न हो
वह लगन किस काम की ॥

जिसका कोई अस्तित्व न हो
वो जिन्दगी किस काम की ।
जो कह न सके अपने जज्बात
वो जुबां किस काम की ॥

जिनमें मधुर मुस्कान न हो
वो होंठ किस काम के ।
जिनमें धड़कन न हो
वो दिल किस काम का ॥

जिनका कोई अर्थ न हो
वो शब्द किस काम के ।
जो विल में ही दबे रहे
वो भाव किस काम के ॥

जो हर न सके दूसरो का दर्द
वो जिन्दगी किस काम की ॥

..... डॉ . मानवती निगम

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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