एकान्त
एकान्त इस एकान्त में कितना है अपनापन यह एकान्त फिर भी मुझे प्रिय है क्योंकि यह सब कुछ तुम्हारा दिया हुआ है यह न जुड़कर भी तुमसे जुड़ा है हमें कुछ न मिलकर भी बहुत कुछ मिला है अब सब से मन उचटने लगा है व्यर्थ ही मन भटकने लगा है जिन्दगी अब रास नहीं आती अच्छी बुरी कोई चीज़ नहीं भाती बहुत जीये इस जीवन को करके सब पर विशवास पाया न कुछ भी, मिला हर पल नया आघात कुछ नहीं जीवन में सब है निस्सार कभी कभी ऐसा क्षण भी आता है जब कोई साथ नहीं होता है तब यह महसूस होता है कहीं पर एकान्त से एक रिश्ता है गुजरे पल आँखो में समाए रहते है यादें हर क्षण साथ रहती है इसीलिए तो एकान्त में तन्हाई महसूस नहीं होती है . . . . डॉ॰ मानवती निगम और पढ़ें : - http://बलिदान

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